सन्धि (Sandhi)-1
सन्धि का अर्थ होता है 'मेल'निकटतम ध्वनियों के मध्य होने वाले मेल को सन्धि कहते हैं |
सन्धि दो ध्वनियों (स्वर और व्यंजन)के बीच होती है, न कि दो शब्दों के बीच |
हिन्दी भाषा में सन्धि के तीन प्रकार हैं |
1. स्वर सन्धि
2.व्यंजन सन्धि
3.विसर्ग सन्धि
1.स्वर संधि
दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं।
जैसे - विद्या + आलय = विद्यालय।
जैसे - विद्या + आलय = विद्यालय।
स्वर-संधि पाँच प्रकार की होती हैं -
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण संधि
- अयादि संधि
1. दीर्घ संधि
सूत्र-अक: सवर्णे दीर्घ: अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं।
ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं। जैसे -
(क) अ,आ + अ,आ = आ
- अ + अ = आ धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
- अ + आ = आ हिम + आलय = हिमालय
- अ + आ =आ पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
- आ + अ = आ विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
- आ + आ = आ विद्या + आलय = विद्यालय
(ख) इ और ई की संधि
- इ + इ = ई रवि + इंद्र = रवींद्र मुनि + इंद्र = मुनींद्र
- इ + ई = ई गिरि + ईश = गिरीश मुनि + ईश = मुनीश
- ई + इ = ई मही + इंद्र = महींद्र नारी + इंदु = नारींदु
- ई + ई = ई नदी + ईश = नदीश मही + ईश = महीश
(ग) उ और ऊ की संधि
- उ + उ = ऊ भानु + उदय = भानूदय विधु + उदय = विधूदय
- उ + ऊ = ऊ लघु + ऊर्मि = लघूर्मि सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
- ऊ + उ = ऊ वधू + उत्सव = वधूत्सव वधू + उल्लेख = वधूल्लेख
- ऊ + ऊ = ऊ भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
2. गुण संधि
इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए और उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण संधि कहते हैं।
जैसे -
(क) अ + इ = ए नर + इंद्र = नरेंद्र
- अ + ई = ए नर + ईश= नरेश
- आ + इ = ए महा + इंद्र = महेंद्र
- आ + ई = ए महा + ईश = महेश
(ख) अ + उ = ओ ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
- आ + उ = ओ महा + उत्सव = महोत्सव
- अ + ऊ = ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि
- आ + ऊ = ओ महा + ऊर्मि = महोर्मि
(ग) अ + ऋ = अर् देव + ऋषि = देवर्षि
(घ) आ + ऋ = अर् महा + ऋषि = महर्षि
3. वृद्धि संधि
अ, आ के बाद यदि ए, ऐ आये तो ऐ तथा अ, आ के बाद ओ, औ आने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं।
जैसे -
(क) अ + ए = ऐ एक + एक = एकैक
- अ + ऐ = ऐ मत + ऐक्य = मतैक्य
- आ + ए = ऐ सदा + एव = सदैव
- आ + ऐ = ऐ महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
(ख) अ + ओ = औ वन + औषधि = वनौषधि
आ + ओ = औ महा + औषधि = महौषधि
- अ + औ = औ परम + औषध = परमौषध
- आ + औ = औ महा + औषध = महौषध
4. यण संधि
(क) इ, ई के आगे कोई विजातीय (दूसरा) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।
(ख) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ,ऊ को ‘व्’ हो जाता है।
(ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर 'ऋ' को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।
- इ + अ = य् + अ यदि + अपि = यद्यपि
- ई + आ = य् + आ इति + आदि = इत्यादि।
ई + अ = य् + अ नदी + अर्पण = नद्यर्पण
- ई + आ = य् + आ देवी + आगमन = देव्यागमन
(घ) उ + अ = व् + अ अनु + अय = अन्वय
- उ + आ = व् + आ सु + आगत = स्वागत
उ + ए = व् + ए अनु + एषण = अन्वेषण
- ऋ + अ = र् + आ पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
5. अयादि संधि
ए, ऐ और ओ,औ से परे किसी भी अन्य स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं।
(क) ए + अ = अय् ने + अन = नयन
(ख) ऐ + अ = आय् गै + अक = गायक
(ग) ओ + अ = अव् पो + अन = पवन
(घ) औ + अ = आव् पौ + अक = पावक
(ङ) औ + इ = आव् नौ + इक = नाविक
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