रस-2 (Ras in hindi)

रस-2

जिस प्रकार मिट्टी में गन्ध स्थायी होती है, किन्तु पानी डालने पर वह बाहर आ पाती है | उसी प्रकार प्रत्येक सामाजिक प्राणी में रति, हास, शोक, क्रोध आदि स्थायी भाव संस्कारजन्य होते हैं | जो कि विभिन्न कारणों से अव्यक्त रहते हैं | विभाव, अनुभाव, संचारी के सहयोग से वे अव्यक्त स्थायीभाव व्यक्त हो जाते हैं | उन्हीं का आनंदानुभव 'रस' है |

रसों के प्रकार

(1)  श्रृंगार रस
 श्रृंगार रस का आधार स्त्री-पुरुष का आकर्षण होता है |
इसका स्थायी भाव रति है |
जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रति भाव का रसास्वादन होता है, वहाँ श्रृंगार माना जाता है | 
श्रृंगार रस के दो भेद हैं - (अ) संयोग श्रृंगार     (ब) विप्रलंभ या वियोग श्रृंगार
 (अ) संयोग श्रृंगार
जब कविता में नायक-नायिका के मिलन या संयोग का वर्णन किया जाता है, वहाँ संयोग श्रृंगार होता है | जैसे-
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय | सौंह करें, भौहनि हँसे, देन कहे नटजाय ||
(ब) विप्रलंभ या वियोग श्रृंगार 
नायक-नायिका के बिछुड़ने या दूर देश में रहने की स्थिति का वर्णन वियोग श्रृंगार में आता है |
कागज पर लिखत न बनत, कहत सन्देश लजात | कहि है सब तेरो हियो, मेरे हिय की बात || 

(2) हास्य रस

हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है |
जब किसी व्यक्ति विशेष की विकृत वाणी, विकृत वेश एवम् आकृति, चेष्टा आदि को देखकर या सुनकर हँसी उत्पन्न होती है | वहाँ हास्य-रस होता है |
वैद्य, डॉक्टर को कभी नहीं दिखाओ नब्ज | ठूँस-ठूँस कर खाइये, भाग जायेगी कब्ज ||

(3) करुण रस

 करुण रस का स्थायी भाव 'शोक' है |
जब प्रिय वस्तु या व्यक्ति का नाश और अनिष्ट की प्राप्ति से चित्त में जो विकलता आती है | वही करुण रस है |

              नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
                                                पर इनसे जो आँसू बहते,
             सदय हृदय वे कैसे सहते ?
                                              गये तरस ही खाते !
             सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

(4) रौद्र रस 

रौद्र रस का स्थायी भाव 'क्रोध' होता है |
विरोधी पक्ष द्वारा किसी मनुष्य, देश, समाज या धर्म का अपमान करने से उसके प्रतिशोध में जो क्रोध का भाव पैदा होता है, वही रौद्र रस होता है |
सुनत लखन के वचन कठोरा, परशु सुधारि धरेउ कर घोरा |
अब जन देउ दोष मोहि लोगू, कटुवादी बालक वध जोगू ||

(5) वीर रस 

वीर रस में 'उत्साह'  स्थायी भाव होता है |
युद्ध में विपक्षी को देखकर, ओजस्वी वीर घोषणाएँ, वीर गीत सुनकर युद्ध उत्साह बढ़ता है | यही वीर रस है |
जैसे- 
उठो धरा के अमर सपूतो 

                                      पुनः नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
                                      नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नया प्रात है, नई बात है,
                                     नई किरण है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगे,
                                     नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में,
                                    नई-नई मुसकान भरो।

(6) भयानक रस 

इसका स्थायी भाव 'भय' है |
भयानक वस्तु के देखने या सुनने से जब ह्रदय में भय परिपुष्ट होता है, वहाँ भयानक रस रहता है |
हाहाकार हुआ क्रंदनमय, कठिन वज्र होते थे चूर |
हुए दिगन्त बधिर भीषण रव बार-बार होता था क्रूर ||

(7) वीभत्स रस 

वीभत्स रस का स्थायी भाव 'जुगुप्सा' या घृणा है |
दुर्गन्धयुक्त वस्तुओं,चर्बी,रुधिर,उद्वमन आदि को देखकर मन में जो घृणा पैदा होती है, वहाँ वीभत्स रस रहता है |
जैसे-   कहुं धूम उठत, बरति कहुं चिता, कहुं होत रोर कहुं अर्थी धरि अहे | 
           कहुं हाड़ परो, कहुं जरो, अधजरो माँस, कहुं गीध काग माँस नोचत पीर अहे |

(8) अद् भुत रस 

अद् भुत रस का स्थायी भाव 'विस्मय' है |
अलौकिक व आश्चर्यजनक वस्तुओं या घटनाओं को देखने सुनने से जो विस्मय होता है, वही अद् भुत रस में परिणित हो जाता है |
अखिल भुवन चर-अचर जग, हरि मुख में लखि मातु |चकित भई गद गद वचन, विकसित दृग पुलकातु ||

(9) शान्त रस 

शान्त रस का स्थायी भाव निर्वेद या शम है |
संसार की अनित्यता एवम् दुःख की अधिकता को देखकर ह्रदय में विरक्ति उत्पन्न होती है | यही शान्त रस का कारण है |
चलती चाखी देखकर दिया कबीर रोय | दोउ पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय ||

(10) वात्सल्य रस 

इसका स्थायी भाव 'वात्सल्य' है |
माता-पिता या अन्य व्यक्तियों द्वारा अल्पव्यस्क शिशु के प्रति प्रेम ही वात्सल्य है |
जैसे-
            चलत देखि जसुमति सुख पावै।
           ठुमकि-ठुमकि पग धरनि रेंगत, जननी देखि दिखावै।
           देहरि लौं चलि जात, बहुरि फिरि-फिरि इतहिं कौ आवै।
           गिरि-गिरि परत,बनत नहिं लाँघत सुर-मुनि सोच करावै।

(11) भक्ति रस 

इसका स्थायी भाव देवी-देवताओं के प्रति प्रेम (रति) है |

अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई,
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई ||

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1 comment:

Priya Sharma said...

रस का शाब्दिक अर्थ है आनंद। काब्य को पढ़ने और सुनने में जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहा जाता है। पाठक या श्रोता के हृदय में स्थित स्थाई भाव ही विभावादि से संयुक्त हो कर रस रूप में परिणत हो जाता है। रस को काव्य की आत्मा / प्राण तत्व माना जाता है। रस के भेद : हास्य रस, रौद्र रस, करुण रस, वीर रस, अद्भुत रस, वीभत्स रस, भयानक रस, शांत रस, वात्सल्य रस, भक्ति रस

काव्य-गुण