कविता-5
गिरना भी अच्छा है,
औकात का पता चलता है |
बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को,
अपनों का पता चलता है |
जिन्हें गुस्सा आता है,
वे लोग सच्चे होते हैं |
मैंने झूठों को अक्सर,
मुस्कुराते हुए देखा है |
सीख रहा हूूं मैं भी,
मनुष्यों को पढ़ने का हुनर |
सुना है चेहरे पर,
किताबों से ज्यादा लिखा होता है |
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