तुलसीदास

महाकवि तुलसीदास

हिन्दी भाषा साहित्य में प्रचलित है,कि
सूर शशि तुलसी रवि, उडुगण केशवदास। अब के कवि खद्योत सम, जहां तहां करत प्रकाश ।। 
उक्त पंक्ति से ही हिन्दी साहित्य में तुलसीदास जी के स्थान का पता चलता है। वे हिन्दी साहित्याकाश में देदीप्यमान सूर्य के समान प्रभा युक्त हैं। वे रामभक्ति शाखा के मूर्धन्य कवि हैं। तुलसीदास के सहयोग से हिन्दी साहित्य ने नई ऊँचाई को छुआ। उनकी प्रसिद्ध काव्य मणि रामचरित मानस को प्रत्येक भारतवासी बड़े आदर और सम्मान से पढ़ता है। इन्होंने राम की निर्गुण और सगुण दोनों रूपों मे भक्ति की है। तुलसी के राम मर्यादापुरुषोत्तम हैं।

तुलसीदास का जीवन परिचय 

तुलसीदास का जीवन-वृत्त विवादास्पद है। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर इनकी जन्मतिथि संवत 1589 (सन 1532ईस्वी ) मानी जाती है। बेनीमाधव प्रसाद लिखित 'गोसाई-चरित' और महात्मा रघुवरदास रचित 'तुलसी चरित' में इनका जन्म संवत 1554 बताया गया है। 'शिवसिंह सरोज' में इनका जन्म संवत 1583में उल्लेखित है।
इसी प्रकार इनके जन्म स्थान के विषय में भी मत भिन्नता है।'मूल गोसाई चरित' और 'तुलसी चरित' में इनका जन्मस्थान राजापुर बताया गया है, तुलसीदास द्वारा लिखित पंक्ति 'मैं पुनि निज गुरु सन सुनी, कथा सो सूकर खेत'  के आधार पर लाला सीताराम, गौरीशंकर द्विवेदी, रामनरेशत्रिपाठी, आदि तुलसीदास का जन्मस्थान सोरों को मानते हैं।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के मतानुसार 'सूकर-खेत' को भ्रमवश सोरों समझ लेते हैं, जबकि 'सूकर-क्षेत्र' गोंडा जिले में सरयू नदी के तट पर एक पवित्र तीर्थ-स्थान है।
शिवसिंह सेंगर और रामगुलाम द्विवेदी राजापुर को तुलसीदास का जन्मस्थान मानते हैं। परन्तु अधिकतर विद्वान सोरों को ही तुलसी का जन्मस्थान मानते हैं।
इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था। ये सरयूपारीण ब्राह्मण थे। अभुक्तमूल नक्षत्र में जन्म लेने व जन्म के पश्चात माँ के प्राणान्त के कारण घरवालों ने इनको त्याग दिया। इस कारण इनका बचपन बड़ी कठिनाई में बीता। बाद में नरहरिदास ने इनका पालन-पोषण किया व दीक्षा दी।
एक अनुश्रुति के अनुसार अत्यंत रूपवती रत्नावली के साथ तुलसी विवाह-सूत्र में बंधे। इनको अपनी पत्नी में बहुत आसक्ति थी, अत:  उनके पीहर जाने पर ये आधी रात को बरसात में भीगते हुये अपनी ससुराल पहुँच गए।
पत्नी की फटकार के रूप में कहे ये वचन कि 
"अस्थि चर्म मय देह यह, तासों ऐसी प्रीति।
   नेकु जो होती राम सों, तो काहे भव-भीति।   
अर्थात मेरे इस हाड़-माँस से बने नश्वर शरीर पर तुम्हारा इतना प्रेम है, अगर भगवान से होता तो तुम्हें इस संसार रूपी दुखसागर से मुक्ति मिल चुकी होती। और कहते हैं, कि उसके बाद तुलसी का सांसारिक जीवन आध्यात्मिक में बदल गया।
तुलसीदास को दीर्घायु प्राप्त हुई और और संवत 1680 में इनका स्वर्गवास हुआ।

रचनाएँ

विद्वानों ने इनके द्वारा रचित बारह ग्रन्थों को प्रामाणिक माना है। जो हैं-
रामचरित मानस- यह तुलसीदास का सर्वश्रेष्ठ काव्य है। इसमें रामभक्ति का चर्मोंत्कर्ष तो है,ही साथ में जीवन का उच्चादर्श भी प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रंथ के द्वारा तुलसी ने भक्ति के साथ-साथ सामाजिक पुनरोत्थान का कार्य भी किया है। इन सब के साथ ही मानस में उनका मूलोद्देश्य मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का अनुकरणीय चरित्र-चित्रण भी परिपूर्ण हुआ है।
इस की विषय-वस्तु को तुलसीदास जी ने  कुल सात काण्ड में विभाजित किया हैं।
 1 बालकाण्ड      2 अयौध्या काण्ड
 3 अरण्यकाण्ड  4 किष्किंधा काण्ड
 5 सुन्दरकाण्ड   6 लंकाकाण्ड
 7 उत्तरकाण्ड  आदि।
विनयपत्रिका- इसमें विनय के पदों का संग्रह है। इसकी रचना गीति-शैली के आधार पर की गई है। तुलसी दास पहले भक्त हैं, और फिर कवि हैं। विनय-पत्रिका का कोई पद ऐसा नहीं है, कि जिससे तुलसी की अपने आराध्य के प्रति अनन्यता प्रकट न होती हो। उन्होने स्वयं को तुच्छ और श्रीराम को महान बताया है।
कवितावली-इसके श्रवण और पठन से जहाँ प्रबन्ध काव्य का सा आनन्द मिलता है, वहीं दूसरी ओर इसमें प्रयुक्त छन्द (कवित्त और सवैया) के कारण मुक्तक काव्य की सरसता भी प्राप्त होती है। तुलसीदास जी ने इसमें रामकथा का वर्णन किया है। इसमें भी सात काण्ड हैं, परन्तु इनकी भाषा ब्रजभाषा है।  
गीतावली-यह भी तुलसीदास की एक प्रसिद्ध रचना है। रामकथा से संबन्धित जो गेय पद तुलसी ने समय-समय पर लिखे इसमें उनका संकलन है। सम्पूर्ण पुस्तक मे राम-कथा और राम-चरित्र का ही वर्णन है। गीतों के साथ-साथ उसकी राग-रागिनी का भी उल्लेख किया गया है।
बरवैरामायण-तुलसीदास की इस रचना में 69 बरवै छन्द हैं। इन में परस्पर कोई तारतम्य नहीं है, किन्तु प्रत्येक छन्द अपने आप में पूर्ण है। इसमें सीता के रूप का वर्णन है।
उक्त के अलावा तुलसीदास जी की 'रामलला नहछू' ,'पार्वती-मंगल',जानकी-मंगल, दोहावली, रामाज्ञा-प्रश्नावली, वैराग्य-संदीपनी और कृष्ण-गीतावली आदि रचनाएं प्रमुख ग्रन्थ हैं।

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1 comment:

Anonymous said...

Nice Post

काव्य-गुण