मैथिलीशरण गुप्त

 मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म सन1886 ईस्वी में झाँसी के चिरगाँव में हुआ। ये द्विवेदी युग के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे। आरम्भ में इनकी रचनायें कलकत्ता से छपने वाले 'वैश्योपकारक' पत्रिका में छपती थी। बाद में इनका परिचय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी से हुआ और इनकी कवितायेँ 'सरस्वती' पत्रिका में छपने लगी। द्विवेदी जी गुप्त जी के काव्य-गुरु थे। द्विवेदी जी के आदेश और उपदेश तथा स्नेहमय प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप इनकी काव्य-कला में निखार आया उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' के नाम से भी जाना जाता है

उनकी देशभक्ति से ओत-प्रोत रचनाओं के कारण उन्हें महात्मागांधी ने 'राष्ट्रकवि' की उपाधि प्रदान की। उनकी जयन्ती 3 अगस्त को 'कवि-दिवस' के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। भारत सरकार द्वारा 1954 ईस्वी में आपको 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया। इनकी ख्याति का मूलाधार 'भारत-भारती' (1912) ने हिन्दी भाषियों में देश के प्रति भक्ति और गर्व की भावनायें जाग्रत की

गुप्त जी की रचनायें

गुप्त जी मूलतः प्रबंधकार थे। उन्होंने निम्न ग्रन्थों की रचना की

महाकाव्य- साकेत और यशोधरा 

खंडकाव्य- जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्ध्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, युद्ध, झंकार, पृथ्वीपुत्र, वक संहार, शकुन्तला, विश्व-वेदना, विष्णु-प्रिया, उर्मिला, लीला, प्रदक्षिणा, दिवोदास तथा भूमि-भाग आदि प्रमुख हैं

नाटक 

गुप्त जी ने रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट-भट, विरहिणी, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, स्वदेश-संगीत, हिडिम्बा, हिन्दू, चन्द्रहास आदि प्रसिद्ध नाटक लिखे

12 दिसम्बर 1964 ईस्वी को 78 वर्ष की आयु में इनका स्वर्गवास हो गया


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काव्य-गुण