महाकाव्य
काव्य के दो भेद हैं- श्रव्य काव्य और दृश्य काव्य
श्रव्य काव्य को भी तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-पद्य,गद्य और चंपू काव्य
पद्य को भी फिर तीन भागों में बांट सकते हैं-महाकाव्य, खंडकाव्य, मुक्तक काव्य
श्रव्य काव्य का आशय है-ऐसा काव्य जो श्रवण इंद्रियों का रसास्वादन कराने वाला हो। महाकाव्य इसका एक भेद है।
महाकाव्य के लक्षण निम्नानुसार है-
1.सर्गबद्ध-महाकाव्य सर्गबद्ध होना चाहिए।
2.नायक-महाकाव्य का एक नायक होना चाहिए जो देवता अथवा धीरोदात्त आदि गुणों से युक्त कोई क्षत्रिय कुलीन या एक ही वंश के अनेक कुलीन क्षत्रिय राजा भी हो सकते हैं।
3.अंगीरस-कोई एक अंगीरस होना चाहिए जो कि शृंगार अथवा वीर रस में से कोई एक रस मुख्य हो सकता है।
4. कथावस्तु-कथावस्तु सर्वथा कवि कल्पना से उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। या तो पौराणिक आख्यान या कथा अथवा कोई ऐतिहासिक कथानक का विवेचन हो।
5.पुरुषार्थ-महाकाव्य में पुरुषार्थचतुष्टय (धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष) में से किसी एक फल की कामना का उद्देश होना चाहिए।
6.मंगलाचरण-महाकाव्य के प्रारंभ में आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक अथवा वस्तु निर्देशात्मक मंगलाचरण होना चाहिए।
7.सज्जनों की प्रशंसा व दुष्टों की निंदा का भी विधान होना चाहिए।
8.छन्द-विधान-प्रत्येक सर्ग के कथानक को एक ही प्रकार के छंदों में होना चाहिए किंतु सर्ग के अंत में उस छन्द को बदल दिया जाना चाहिए।
9.सर्ग-संख्या-सर्ग न तो अत्यंत छोटे और न बहुत ही बड़े होने चाहिए। उनकी संख्या भी आठ से अधिक होनी चाहिए।
10.किसी सर्ग में अनेक विधि छंदों का भी विधान हो सकता है।
11.अग्रिम-कथा संसूचन-सर्ग की समाप्ति पर अगले सर्ग की कथा का भी संसूचन होना चाहिए।
12.विषद-वर्णन-सर्ग में कथानकानुसार संध्या,सूर्योदय,चंद्रोदय,रात्रि,प्रदोष,अंधकार,दिन,प्रातः-काल,मध्यान्ह-काल,शिकार,पर्वत, ऋतु,वन,समुद्र,संयोग,वियोग,मुनि,स्वर्ग,नरक,मार्ग,युद्धार्थ गमन,अभ्युदय,विजय,जल-क्रीड़ा, वनविहार,विवाह,पुत्र जन्मोत्सव आदि विभिन्न विषयों का यथा स्थान वर्णन होना चाहिए।
13.सर्ग का नामकरण-कवि द्वारा निबद्ध छन्द के अनुसार अथवा नायक के गुणों के अनुसार या फिर सर्ग की कथा के अनुकूल प्रत्येक सर्ग का नामकरण करना चाहिए।
14.महाकाव्य के लेखन का उद्देश्य-धर्म तथा न्याय की विजय तथा अधर्म व अन्याय की पराजय महाकाव्यका लेखन उद्देश्य होना चाहिए।
उपरोक्त वर्णित बिन्दु सभी महाकाव्यों के सामान्य लक्षण हैं। कवि को महाकाव्य लेखन के समय उनके प्रयोग का ध्यान रखना चाहिए।
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