हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि

अक्षर 

जिसका कभी नाश न हो उसे 'अक्षर' कहते हैं । क्षर का अर्थ है नाश को प्राप्त होना ।और उसमें 'अ' जोड़ने पर विलोमार्थक अर्थात  कभी नाश न होने वाला अर्थ हुआ । 
किसी भी अक्षर का कभी नाश नही होता है । इसलिए प्रत्येक स्वर तथा व्यंजन को अक्षर कहते हैं । अक्षरों के संयोग से शब्द और वाक्य बनते हैं सो वे भी अक्षर ( नाशरहित ) कहलाते हैं ।

वर्ण 

सामान्यत लोग अक्षर और वर्ण को एक ही अर्थ में प्रयुक्त करते हैं ,किन्तु भाषा शास्त्र में वर्ण और अक्षर भिन्न-भिन्न हैं । "वर्ण भाषा की वह छोटी से छोटी इकाई है जिसके टुकड़े न किये जा सकें" ,जबकि लिखित भाषा में भिन्न-भिन्न ध्वनियों के लिए अलग-अलग चिह्न निश्चित कर दिए हैं । ये ही चिह्न 'वर्ण' कहलाते हैं ।

लिपि 

भाषा का सम्बन्ध ध्वनियों से है । ध्वन्यात्मक भाषा बोलने वाले के मुँह से निकलकर सुनने वाले के कान तक जा कर अपना प्रभाव दिखाती है । किन्तु इस मौखिक भाषा का स्वरूप कुछ देर बाद स्वत नष्ट हो जाता है | यह मनुष्य का स्वभाव है, कि वह अपने प्रत्येक कार्य को स्थायित्व देना चाहता है | मानव के इन्ही गूढ़ विचारों ने लिपि को जन्म दिया | शायद मानव की प्रथम लिपि चित्रात्मक रही थी ।

देवनागरी लिपि

हिन्दी सहित भारत की अन्य कई भाषाओं की लेखन लिपि देवनागरी है |
देवनागरी लिपि संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है | देवनागरी लिपि में स्वर और व्यंजन का अलग-अलग वर्गीकरण किया गया है | इसी प्रकार स्वरों को भी ह्रस्व और दीर्घ दो वर्गों में बांटा गया है | इस लिपि में व्यंजनों का वर्गीकरण उनके उच्चारण स्थान के अनुसार किया गया है | यह लिपि प्रत्येक उच्चारित ध्वनि को अभिव्यक्त करने में सक्षम है |

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