व्यंजन
व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में मुँह से निकलने वाली वायु में रूकावट होती है । व्यंजनों के उच्चारण में स्वरों की सहायता की जरुरत होती है ।
व्यंजनों के भेद
(क) स्पर्श व्यंजन – ‘क’ वर्ग से ‘प’ वर्ग तक 25 व्यंजन स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं ,क्योंकि इन व्यंजनों उच्चारण में वायु मुख के किसी न किसी भाग को स्पर्श करते हुए निकलती है |
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
(ख)
अंतस्थ
व्यंजन-इन व्यंजनों के उच्चारण में वायु स्पर्श व्यंजनों की तुलना में कम रूकावट
से निकलती है | इनकी संख्या चार है
य र ल व
य र ल व
(ग) ऊष्म व्यंजन- इन व्यंजनों के उच्चारण में मुँह से निकलने वाली वायु कुछ गर्म (ऊष्म) हो जाती है,इसलिए इन व्यंजनों को ऊष्म व्यंजन कहते हैं,इनकी संख्या भी चार है
श ष स ह
उच्चारण के आधार पर व्यंजन
उच्चारण के आधार पर व्यंजन
उच्चारण के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैं -
1 अल्पप्राण-जिन व्यंजनों के उच्चारण में साँस की मात्रा कम लगानी पड़ती है,उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं | ये हैं -
क ग ङ
च ज ञ
ट ड ण
त द न
प ब म
य र ल व आदि
महाप्राण - जिन व्यंजनों के उच्चारण में अधिक समय व अधिक साँस की मात्रा लगानी पड़ती है , उन व्यंजनों को महाप्राण व्यंजन कहते हैं | जैसे-
ख घ
छ झ
ठ ढ
ठ ढ
थ ध
फ भ
श ष स ह
उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
1 कंठ्य व्यंजन - वे व्यंजन जिनका उच्चारण कंठ के अन्दर से किया जाता है,कंठ्य व्यंजन कहलाते हैं
क ख ग घ ङ ह
2 तालव्य - इनके उच्चारण में जीभ का अगला भाग ऊपर उठकर तालु को स्पर्श करता है , ये हैं -
च छ ज झ ञ श य आदि वर्ण
3 मूर्धन्य व्यंजन - इन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ का अग्र भाग मूर्धा (तालू का बीच वाला ऊपर का कठोर भाग ) को स्पर्श करता है | जैसे- ट ठ ड ढ ण र ष आदि |
4 दन्त्य व्यंजन - ये वे व्यंजन हैं , जिनके उच्चारण में जीभ की ऊपर की नोक दांतों को स्पर्श करती है | ये हैं -
त थ द ध
5 वर्त्स्य व्यंजन - वर्त्स्य का अर्थ होता है मसूड़ा अर्थात जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ का स्पर्श दांतों से थोडा ऊपर मसूडों के साथ होता है -जैसे ल स आदि
व्यंजन न और स को पारम्परिक रूप से दन्त्य कहा जाता है ,किन्तु इनका वास्तविक उच्चारण वर्त्स्य से है |
6 ओष्ठ्य व्यंजन - वे व्यंजन जिनका उच्चारण दोनों होठों को मिलाने से होता है ओष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं |जैसे- प फ ब भ म व आदि व्यंजन |
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