काव्य (कविता)


काव्य अत्यंत ही व्यापक अवधारणा है | आदिकाल से आज तक काव्य के स्वरूप को परिभाषित करने तथा इसके लक्षणों को निर्धारित करने का काव्य मनीषियों ने बहुत प्रयत्न किये हैं | किन्तु एक युग की परिभाषा अगले युग के मानदंडों पर खरी नही उतरती है, और उसमें परिवर्तन करने पड़ते हैं | यह सत्य है, कि मानव के सहज ह्रदय में ही काव्य का सृजन होता है |
जीवन को सरल, सहज और सुन्दर बनाने के लिए ही काव्य की आवश्यकता है | काव्य मानव जीवन को आशा और सफलता की ओर ले जाने वाली अमोघ शक्ति है | वही मनुष्य की सुख-दुःख की अनुभूति का विस्तार करता है |

काव्य शास्त्र की परिभाषाएं 

(क)  भरत मुनि 
आचार्य भरत मुनि को भारतीय काव्यशास्त्र का जनक माना जाता है | उन्होंने अपने ग्रन्थ नाट्यशास्त्र में काव्य के निम्न गुण निर्धारित किये हैं |
काव्य वह है जिसकी रचना कोमल व ललित पदों से की गई हो, जिसमें शब्द और अर्थ गूढ़ न हो, जिसको साधारणजन भी सरलता से समझ सके | जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के रसों का समावेश हो | जिसका कथानक (विषय-वस्तु) रुचिकर और सन्धियुक्त (आपस में जुडा हुआ) हो |
(ख) आचार्य भामह 
         "शब्दार्थो सहितौ काव्यं"
अर्थात शब्द और अर्थ का संयोग ही काव्य है |
(ग) आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी 
कविता वह प्रभावशाली रचना है, जो पाठक या श्रोता के मन पर आनंददायक प्रभाव डालती है |
(घ) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 
        कविता जीवन और जगत की अभिव्यक्ति है |
(ङ) महादेवी वर्मा
कविता कवि विशेष की भावनाओं का चित्रण है | और वह चित्रण इतना सटीक है, कि उससे वैसी ही भावनायें किसी दूसरे (श्रोता या पाठक) के ह्रदय में आविर्भूत होती हैं | 
हमारे मत से काव्य की परिभाषा यह हो सकती है -
शब्द और अर्थ की रमणीयता से युक्त वाक्य रचना को काव्य कहते हैं |

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काव्य-गुण