अलंकार (Alankar)-2

अलंकार-2

1. शब्दालंकार -

 जहाँ काव्य में चमत्कार का आधार केवल शब्द हो वहाँ शब्दालंकार होता है। इसके अंतर्गत अनुप्रास, श्लेष,यमक, वक्रोक्ति आदि अलंकार आते हैं।

अनुप्रास

अनुप्रास शब्द 'अनु' तथा 'प्रास' शब्दों से मिलकर बना है। 'अनु' शब्द का अर्थ है- बार- बार तथा 'प्रास' शब्द का अर्थ है- वर्ण। जिस जगह स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार -बार आवृत्ति होती है, उस जगह अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:-
"चारु- चन्द्र की चंचल किरणें,  खेल रही थी जल- थल में।"

अनुप्रास अलंकार के पांच भेद हैं:-
(1) छेकानुप्रास अलंकार
(2)  वृत्यानुप्रास अलंकार
(3)  लाटानुप्रास अलंकार
(4)  अन्त्यानुप्रास अलंकार
(5)  श्रुत्यानुप्रास अलंकार
(1) छेकानुप्रास अलंकार:-जहाँ एक या एक से अधिक वर्णों की आवृति केवल एक बार ही हो, वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण -
 "बगरे बीथिन में भ्रमर, भरे अजब अनुराग।
  कुसुमित कुंजन में भ्रमर,भरे अजब अनुराग।।"
(2) वृत्यानुप्रास अलंकार - जहाँ एक व्यंजन की आवृति अनेक बार हो, वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:-
 तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये ।
(3) लाटानुप्रास अलंकार - जब एक शब्द या वाक्य खंड की आवृति उसी अर्थ मे हो,वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:-
पराधीन जो जन, नही स्वर्ग-नरक ता हेतु ।
पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ग नरक ता हेतु ।।
(4) अन्त्यानुप्रास अलंकार:- जहाँ छन्द के चरणों के अन्त में एक समान वर्णों का प्रयोग होता है, वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:-
लगा दी किसने आकर आग। कहाँ था तू संशय के नाग ?
(5) श्रुत्यानुप्रास अलंकार:- जहाँ कानो को मधुर लगने वाले वर्णों की आवृति होती है, वहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:-
 दिनांत था ,थे दीननाथ डूबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।

श्लेष अलंकार  

श्लेष का अर्थ -'चिपका हुआ' होता है।जहाँ काव्य में प्रयुक्त किसी शब्द के एक अर्थ के साथ-साथ एकाधिक अर्थ चिपककर आ जाते हैं | वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण -
रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून | पानी गये ना ऊबरे, मोती, मानुस, चून ||
यहाँ पानी का अर्थ मोती के लिए चमक,मनुष्य के लिए मान-सम्मान तथा चून(आटे) के लिए जल है | अतः श्लेष अलंकार है ।
श्लेषालंकार के निम्न दो भेद हैं-
अभंग श्लेष - जहाँ पर शब्द के विभिन्न अर्थ टुकड़े किये बिना ही स्पष्ट हो जाते हैं, तो अभंग श्लेष अलंकार माना जाता है | जैसे पानी गए न ऊबरे........।दोहे में पानी के तीनों अर्थ बिना टुकड़े किये ही प्राप्त हो जाते हैं ।अतः यहाँ अभंग श्लेष अलंकार है ।
सभंग श्लेष - जहाँ शब्द के एकाधिक अर्थ प्राप्त करने के लिए उसके टुकड़े करने पड़ें । वहाँ पर सभंग श्लेष अलंकार होता है । जैसे-
चिरजीवों जोरी जुरै, क्यों न स्नेह गंभीर। 
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।।
यहाँ पर 'वृषभानुजा' शब्द के दो अर्थ प्राप्त करने के लिए इसके दो टुकड़े (वृषभानु+जा=राधा) तथा (वृषभ+अनुजा=बैल की बहिन गाय) करने सकते हैं ।अतः यहाँ सभंग श्लेष अलंकार है ।

यमक  अलंकार 

जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग -अलग हों वहाँ पर यमक अलंकार होता है। 
जैसे :    
कनक कनक तें सौ गुनी, मादकता अधिकाय। 
            या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय।।
यहाँ पर  पहले में 'कनक' का अर्थ ‘सोना’ तथा दूसरे का  ‘धतूरा’ है। 
 एक अन्य उदहारण-
  काली 'घटा' का घमण्ड 'घटा' ।
यहाँ पहले घटा शब्द का अर्थ 'बादल' तथा दूसरे घटा शब्द का अर्थ घटना या कम होना है । अतः यमकालंकार है ।

वक्रोक्ति अलंकार

वक्रोक्ति शब्द वक्र=टेढ़ी, उक्ति=बात अर्थात टेढ़ी बात से बना है।
जहाँ श्रोता, वक्ता के कथन का जान-बूझकर साधारण अर्थ को छोड़कर टेढ़ा अर्थ निकालता या समझता है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है ।
जैसे- प्यारी काहे आज तुम वामा है इतराय ।
 हम तो हैं वामा सदा, इसमें अचरज की क्या बात।।
इस वाक्य में नायक अपनी नायिका से पूछ रहा है,कि प्यारी आज तुम वामा (टेढ़ी) होकर क्यों इतरा रही हो ? नायिका जवाब देती है, कि हम तो सदा से ही वामा (स्त्री) हैं,इसमें आश्चर्य की क्या बात है। यहाँ नायिका जान-बूझकर वामा का अर्थ टेढ़ी न ग्रहणकर स्त्री कर रही है, अतः वक्रोक्ति अलंकार है।

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