अलंकार
जिस प्रकार शरीर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार कविता में सौन्दर्य उत्पन्न करने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है |
'अलंकार' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है- आभूषण।
काव्य रूपी काया की शोभा बढ़ाने वाले अवयवों को अलंकार कहते हैं।
दूसरे शब्दों में जिस प्रकार आभूषण शरीर की शोभा बढाते हैं, उसी प्रकार अलंकार साहित्य या काव्य को सुंदर व रोचक बनाते हैं।अलंकारों के बारे में कवि केशवदास ने कहा है, कि-
जदपि सुजाति सुलक्षणी, सुबरन सरस सुवृत्त।
भूषण बिनु न बिराजई, कविता, बनिता, मित्र।।
अर्थात श्रेष्ठ गुणी होने पर भी कविता और बनिता(स्त्री) आभूषणों(अलंकारों) के बिना शोभा नही देते हैं |
अलंकारों के प्रमुख तीन भेद होते हैं -
(1) शब्दालंकार
(2) अर्थालंकार
(3) उभयालंकार
(1) शब्दालंकार
कविता में जहाँ सौन्दर्य शब्दों के द्वारा उत्पन्न किया जाता है, वहाँ शब्दालंकार होता है | यदि शब्दों के स्थान पर उनके पर्यायवाची शब्द रख देते हैं, तो काव्य का चमत्कार नष्ट हो जाता है |
प्रमुख शब्दालंकार अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि हैं ।
(2) अर्थालंकार
जो काव्य में अर्थ के द्वारा चमत्कार उत्पन्न करते हैं, वे अर्थालंकार कहलाते हैं | जैसे उपमा, रूपक आदि । यहाँ शब्दों की जगह पर उनके पर्यायवाची भी रख दिए जाते हैं, तो उनका चमत्कार यथावत रहता है ।
(3) उभयालंकार
जो शब्द और अर्थ दोनों में चमत्कार पैदा करके काव्य की शोभा बढाते हैं, वे उभयालंकार हैं । इन्हें संसृष्टि या संकर भी कहते हैं |
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