काव्यगुण
काव्य में आन्तरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्म या तत्व को काव्य गुण या शब्द गुण कहते हैं। यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है, जैसे फूल में सुगन्ध।अर्थात काव्य की शोभा करने वाले या रस को प्रकाशित करने वाले तत्व या विशेषता का नाम ही गुण है।
काव्य गुण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं -
1. माधुर्य 2. ओज 3. प्रसाद
1. माधुर्य गुण
किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में जहाँ मधुरता का संचार होता है, उसमें माधुर्य गुण होता है। यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है।
(अ) माधुर्य गुण युक्त काव्य में कानों को प्रिय लगने वाले मृदु वर्णों का प्रयोग होता है, जैसे - क,ख, ग, च, छ, ज, झ, त, द, न, ...आदि। (ट वर्ग को छोडकर)(ब) इसमें कठोर एवं संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग नहीं किया जाता।
(स) आनुनासिक वर्णों की अधिकता।
(द) अल्प समास या समास का अभाव।
इस प्रकार हम कह सकते हैं,कि कर्ण प्रिय, आर्द्रता, समासरहितता, चित की द्रवणशीलता और प्रसन्नताकारक काव्य माधुर्य गुण युक्त काव्य होता है।
उदाहरण 1.
बसों मोरे नैनन में नंदलाल,
मोहिनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने बिसाल।
उदाहरण 2.
कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि॥
उदहारण 3.
फटा हुआ है नील वसन क्या, ओ यौवन की मतवाली ।
देख अकिंचन जगत लूटता, छवि तेरी भोली भाली ।।
2. ओज गुण
ओज का शाब्दिक अर्थ है-तेज, प्रताप या दीप्ति ।
जिस काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में ओज, उमंग और उत्साह का संचार होता है, उसे ओज गुण प्रधान काव्य कहा जाता हैं ।यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स, रौद्र और भयानक रस में पाया जाता है।
(अ) इस प्रकार के काव्य में कठोर संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग होता है।
(ब) इसमें संयुक्त वर्ण 'र' के संयोगयुक्त ट, ठ, ड, ढ, ण का प्राचुर्य होता है।(स) समासाधिक्य और कठोर वर्णों की प्रधानता होती है।
उदाहरण 1.
बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
उदाहरण 2.
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुध्द शुध्द भारती।
स्वयं प्रभा, समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
उदाहरण 3.
हाय रुण्ड गिरे, गज झुण्ड गिरे, फट-फट अवनि पर शुण्ड गिरे।
भू पर हय विकल वितुण्ड गिरे, लड़ते-लड़ते अरि झुण्ड गिरे।
भू पर हय विकल वितुण्ड गिरे, लड़ते-लड़ते अरि झुण्ड गिरे।
3. प्रसाद गुण
प्रसाद का शाब्दिकार्थ है - निर्मलता, प्रसन्नता। जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हृदय या मन खिल जाए , हृदयगत शांति का बोध हो, उसे प्रसाद गुण कहते हैं। इस गुण से युक्त काव्य सरल, सुबोध एवं सुग्राह्य होता है। जैसे अग्नि सूखे ईंधन में तत्काल व्याप्त हो जाती है, वैसे ही प्रसाद गुण युक्त रचना भी चित्त में तुरन्त समा जाती है।
यह सभी रसों में पाया जा सकता है।
उदाहरण 1
जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।।
उदाहरण 2.
हे प्रभो ज्ञान दाता ! ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।।
उदाहरण 3.
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना।
परिचय इतना इतिहास यही ,
उमड़ी कल थी मिट आज चली।।
नोट- हिन्दी भाषा व्याकरण, काव्य-शास्त्र, हिन्दी साहित्य का इतिहास एवं हिन्दी व्याकरण ऑनलाइन टेस्ट देने उनकी उत्तर व्याख्या वीडियो देखने के लिए log in करें hindikojano.com और हिन्दी भाषा से सम्बंधित समस्त विषय-वस्तु प्राप्त करें |
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जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
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22 comments:
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धन्यवाद जी।
किन्तु आप अपने बारे में भी परिचय देते तो हमें और प्रेरणा मिलती। परन्तु आपने हमारे ब्लॉग को पसन्द किया।इसके लिये आपको धन्यवाद।
अन्य लोगों को भी इसके लिये प्रेरित करें।
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आप अपनी जरूरत के अनुसार पोस्ट पढ़ें व अपने अन्य साथियों को भी साईट के बारे में बतावें जिससे अधिकाधिक लोग लाभान्वित हो सकें।
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Thank you sirr
Nice post
Guru to esa chahiye jo Sikh ko sarbas dei
M konsa kavygun h
वेरी नाइस एंड सिंपल लैंग्वेज थैंक्स a lot sir
Good post
आप जैसे ही कुछ महानुभावों के कारण आज भी हम पश्चिमी सभ्यता से बचे हैं । जिस तरह आज हमारा पश्चिमीकरण हो रहा है वह वास्तव में बिचारणिय है ।
आपको कोटिशः नमन ।
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Nice sir
Thanks you sir for this content
Thanku sir your language is very simple and short ����I am from Bhagalpur Bihar my nam is pihu❤️����
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