भक्तिकाल (Bhaktikal)

भक्ति शब्द की निष्पत्ति 'भज' धातु से हुई है, जिसका अर्थ है 'सेवा करना' । भक्ति में ईश्वर का भजन, पूजन, प्रीति और अर्पण आदि सभी शामिल हैं |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने मध्यकाल को भक्तिकाल की संज्ञा से नामित किया है | अनेक विद्वानों ने इस समय रचित हिन्दी साहित्य को भावपक्ष और कलापक्ष का सर्वश्रेष्ठ रूप मानकर हिन्दी साहित्य का स्वर्णकाल माना है 
वस्तुतः अनुभूतिपक्ष और अभिव्यक्तिपक्ष का जैसा भाव प्रवण और कलात्मक सामंजस्य भक्तिकाल में मिलता है ।वैसा पूर्ववर्ती और परवर्ती साहित्य में मिलना दुर्लभ है ।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भक्ति आन्दोलन को इस्लामी आक्रमणों से पराजित हिन्दु जनता की असहाय एवम् निराश मन:स्थिति की उपज माना है | किन्तु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी इस आन्दोलन को परम्परा क्रम में भारतीय चिंतनधारा के स्वाभाविक विकास के रूप में देखते हैं ।
भक्तिकाल का आरम्भ सभी विद्वानों ने दक्षिण भारत से माना है।

समय निर्धारण 

 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भक्ति-काल का समय सन् 1318 से 1643 ईस्वी तक माना है। तथा अधिसंख्यक विद्वान् उनके मत से सहमत हैं ।

भक्तिकाल के कवि एवम् कविता 

भक्तिकाल के साहित्य को हम दो भागों में बाँट सकते हैं -
(1) निर्गुण भक्ति काव्य   (2) सगुण भक्ति काव्य   
निर्गुण भक्ति काव्य को पुन: दो भागों में विभाजित किया गया है-
(अ) ज्ञानाश्रयी शाखा    (ब) प्रेमाश्रयी शाखा

 (अ) ज्ञानाश्रयी शाखा

इस शाखा के कवियों ने ईश्वर के रंगरूप, आकार रहित रूप की उपासना की | निर्गुण-धारा भारतीय ब्रह्मज्ञान, योगसाधना और इस्लाम के एकेश्वरवाद की उपासना पद्धति को लेकर अग्रसर हुई |
ज्ञानास्रयी शाखा के प्रमुख कवि
  1.  कबीर (1397-1518 ईस्वी)   1 रमैनी 2 सबद  3 साखी (बीजक)
  2.  रैदास (15वीं सदी)    सतबानी
  3.  गुरु नानक (1469से 1531 ईस्वी)   जपुजी, आसादीवार, रहिरास और सोहिला
  4.  दादूदयाल (1544-1603ईस्वी)   हरडेवानी
  5.  सुन्दरदास (1596-1689 ईस्वी)  सुन्दरविलास

(ब) प्रेमाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि

  1. कुतुबन (15वीं से 16वीं सदी)-   मिरगावती
  2. मलिक मोहम्मद जायसी (16वीं सदी)   अखरावट, आख़िरी कलाम और पदमावत
  3. मंझन (16वीं सदी) मधुमालती 

सगुण भक्ति काव्य को भी हम दो भागों में बाँट सकते हैं-
1 राम भक्ति काव्य
2 कृष्ण भक्ति काव्य
(1) राम भक्ति काव्य - इस काव्य-धारा में राम से सम्बंधित कविता और उनकी कवितायेँ आती हैं |

1.  रामानन्द (1300 से 1411ईस्वी ) वैष्णवमताज भास्कर, रामार्चन पद्धति |
2.  विष्णुदास (15वीं सदी)        रामायण कथा
3.  अग्रदास (16वीं सदी)          ध्यानमंजरी, अष्टयाम, रामभजन मंजरी, उपासना-बावनी, पदावली |
4.  ईश्वरदास (16वीं सदी)          रामजन्म, अंगदपेज,भरत-मिलाप, स्वर्गारोहिणी कथा और एकादसी कथा |
5.  तुलसीदास(15321623ईस्वी) रामचरितमानस,रामललानहछु,वैराग्यसंदीपनी,बरवैरामायण,पार्वतीमंगल,
     जानकीमंगल, रामाज्ञाप्रश्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, श्रीकृष्णगीतावली और विनय पत्रिका आदि |
6.  सूरदास (1478-1583 ईस्वी)     सूरसागर, दसरथ-विलाप, सीता-हनुमान संवाद |
7.  नाभादास (16वीं सदी)              भक्तमाल |
8.  केशवदास (1555-1617 ईस्वी)  विज्ञान गीता, रतनबावनी, जहाँगीर-जस-चन्द्रिका, वीरसिंहदेव-                            चरित्र,रसिकप्रिया, कविप्रिया और रामचन्द्रिका आदि |

(2) कृष्ण भक्ति काव्य 

  1. सूरदास (1478-1583ईस्वी) सूरसागर, साहित्य-लहरी और सूर-सारावली |
  2. कुम्भनदास 
  3. परमानन्द दास 
  4. कृष्ण दास 
  5. नन्ददास
  6. गोविन्द स्वामी 
  7. छीतस्वामी
  8. चतुर्भुजदास 
  9. श्रीभट्ट
  10. स्वामी हरिदास 
  11. जगन्नाथ गोस्वामी 
  12. बिहारिन दास
  13. मीरा बाई (1504-1563) मीरा पदावली 
  14. रसखान (16वीं सदी) सुजान रसखान, प्रेमवाटिका, दानलीला और अष्टयाम आदि |
  15. नरोत्तम दास |
  उक्त वर्णन के आधार पर हम कह सकते हैं, कि भक्तिकाल हिन्दी साहित्य जगत का स्वर्ण-युग था |

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