हिन्दी साहित्य का इतिहास-1(HISTORY OF HINDI LITERATURE)

हिन्दी भाषा साहित्य का इतिहास 

हिन्दी भाषा के साहित्य का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है | यद्यपि हिन्दी का इतिहास संस्कृत भाषा जितना पुरातन एवम् समृद्ध तो नहीं, किन्तु संसार की अधिसंख्यक भाषाओं से श्रेष्ठ व प्राचीन है |

नामकरण 

यूँ तो हिन्दी साहित्य के इतिहास का नामकरण कई लेखकों द्वारा किया गया और उन्होंने इसे समय, काल की परिस्थितियों, काव्य-गत विशेषताओं के आधार पर अलग-अलग नाम दिए गए  |  जैसे-

वीरगाथा काल     -  आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
आदिकाल          -   आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
चारण काल        -    डा. रामकुमार वर्मा
आरम्भिक काल  -    मिश्र बंधुओं
बीज-वपन काल  -   महावीर प्रसाद द्विवेदी
प्रारंभिक काल    -  डा. गणपति चन्द्र गुप्त
वीरगाथा काल    -  डॉ. विश्व नाथ प्रसाद मिश्र
अपभ्रंश काल    -   चन्द्रधर शर्मा गुलेरी          आदि नामों से संबोधित किया है |

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य के इतिहास के प्रारंभिक काल को आदिकाल नाम दिया है। विद्वान भी इस नाम को अधिक उपयुक्त मानते हैं। यह काल बहुत अधिक परंपरा-प्रेमी, रूढि़ग्रस्त, सजग और सचेत कवियों का काल है। आदिकाल नाम ही अधिक योग्य है, क्योंकि साहित्य की दृष्टि से यह काल अपभ्रंश काल का विकास ही है, पर भाषा की दृष्टि से यह परिनिष्ठित अपभ्रंश से आगे बढ़ी हुई भाषा की सूचना देता है। क्योंकि इस नाम से उस व्यापक पुष्ठभूमि का बोध होता है, जिस पर परवर्ती साहित्य खड़ा है। भाषा की दृष्टि से इस काल के साहित्य में हिंदी के प्रारंभिक रूप का पता चलता है तो भाव की दृष्टि से भक्तिकाल से लेकर आधुनिक काल तक की सभी प्रमुख प्रवृत्तियों के आदिम बीज इसमें खोजे जा सकते हैं। इस काल की रचना-शैलियों के मुख्य रूप इसके बाद के कालों में मिलते हैं। आदिकाल की आध्यात्मिक, श्रृंगारिक तथा वीरता की प्रवृत्तियों का ही विकसित रूप परवर्ती साहित्य में मिलता है। इस कारण आदिकाल नाम ही अधिक उपयुक्त तथा व्यापक है।

समय विभाजन 

     ग्रियर्सन और मिश्र बंधुओं ने आदि काल का समय (643 ईस्वी से 1389 ईस्वी ) तक माना है | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आदि काल का समय (993 ईस्वी से 1318 ईस्वी ) तक माना है | वह विभाजन ही कुछ हेर-फेर के साथ-साथ आज तक मान्य है |
मुख्यतः दसवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक का समय ही आदि काल का रहा है | उससे पूर्व हिंदी का अस्तित्व अपभ्रंश के रूप में तो मान सकते हैं, जो हिन्दी नही है |

आदिकाल के प्रमुख कवि एवम् कविता 

हिन्दी के प्रथम कवि और उसकी कविता के ऊपर विद्वत जगत में बहुत मतभेद हैं | ठा. शिवसिंह सेंगर सातवीं सदी के 'पुष्य या पुंड' कवि को प्रथम कवि मानते हैं | डॉ. राहुल सांस्कृत्यायन ने सातवीं सदी के सिद्ध सरहपाद को प्रथम कवि स्वीकार किया| डॉ.गणपति चन्द्र गुप्त जैन कवि शालिभद्र सूरि को हिन्दी काआदिकवि मानते हैं |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चन्दवरदायी को हिन्दी का प्रथम कवि तथा उनकी रचना 'पृथ्वीराज रासो' को हिन्दी का प्रथम महाकाव्य स्वीकार किया है |
आज भी अधिकतर विद्वान आचार्य शुक्ल के मत से सहमत हैं |
आदिकालीन कवि एवम् उनकी प्रमुख कृतियों का विवरण प्रस्तुत कर रहें हैं :
अब्दुर्रहमान     :      संदेश रासक
नरपति नाल्ह    :      बीसलदेव रासो (अपभ्रंश हिंदी)
चंदबरदायी      :      पृथ्वीराज रासो (डिंगल-पिंगल हिंदी)
कुशललाभ       :      ढोला मारू रा दूहा
अमीर खुसरो    :      खालिकबारी
दलपति विजय  :       खुमान रासो (राजस्थानी हिंदी)
जगनिक           :       परमाल रासो
शार्गंधर            :       हम्मीर रासो
नल्ह सिंह         :       विजयपाल रासो
जल्ह कवि        :       बुद्धि रासो
माधवदास चारण :   राम रासो
देल्हण             :       गद्य सुकुमाल रासो
श्रीधर              :      रणमल छंद , पीरीछत रायसा
जिनधर्मसूरि     :      स्थूलिभद्र रास
गुलाब कवि      :      करहिया कौ रायसो
शालिभद्रसूरि   :      भरतेश्वर बाहुबलिरास
जोइन्दु             :      परमात्म प्रकाश
केदार              :      जयचंद प्रकाश
मधुकर कवि     :      जसमयंक चंद्रिका
स्वयंभू              :      पउम चरिउ
योगसार           :     सानयधम्म दोहा
हरप्रसाद शास्त्री :    बौद्धगान और दोहा
धनपाल           :     भवियत्त कहा
लक्ष्मीधर         :      प्राकृत पैंगलम
अमीर खुसरो  :       किस्सा चाहा दरवेश, खालिक बारी
विद्यापति        :      कीर्तिलता, कीर्तिपताका, विद्यापति पदावली (मैथिली)
उक्त कवि और उनके रचनाएँ आदिकालीन काव्य में मानी जाती हैं |
इस प्रकार हिन्दी का आदिकाल काव्य की दृष्टि से बहुत ही वैविध्य लिए हुए है | यह समूचे हिन्दी काव्य-प्रासाद की सुदृढ़ नीव है | इसकी मूल प्रवृत्तियां ही विकसित होकर भक्ति, श्रंगार, वीर-भाव, आदि में प्रस्फुटित हुई और कबीर, सूर, तुलसी, भूषण, प्रसाद और निराला के महान राष्ट्रीय काव्य को स्वरूप मिला |

 नोट- हिन्दी भाषा व्याकरण, काव्य-शास्त्र, हिन्दी साहित्य का इतिहास एवं हिन्दी व्याकरण ऑनलाइन टेस्ट देने उनकी उत्तर व्याख्या वीडियो देखने के लिए log in करें hindikojano.com और हिन्दी भाषा से सम्बंधित समस्त विषय-वस्तु प्राप्त करें |

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