हिन्दी में बिन्दी

अनुस्वार और अनुनासिक ध्वनियाँ 

नाक के द्वारा बोली जाने वाली वे ध्वनियाँ जिनके पहले स्वर आना जरूरी है,अनुस्वार कहलाती हैं |
(अनु का अर्थ पीछे और स्वार का अर्थ स्वर) अर्थात स्वर के पीछे आने वाली ध्वनि = अनुस्वार 
जैसे- अंग  (अ+ङ्‍+ग)
अनुस्वार ध्वनियों के लिखने के लिए ङ्,ञ्,ण्,न्,म् आदि व्यंजन संकेतों का प्रयोग किया जाता है| इसके साथ-साथ बिन्दु (०) का भी प्रयोग होता है |
य,र,ल,व,श,स,ष,ह से पूर्व आने वाली अनुस्वार ध्वनि के लिए बिंदु का ही प्रयोग किया जाता है | जैसे- हंस, संवाद आदि |
अनुस्वार ध्वनि स्वर नहीं है, क्योंकि इसके उच्चारण में व्यंजन के उच्चारण की तरह रुकावट होकर फिर नाक से हवा निकलती है, साथ ही ये शुध्द व्यंजन भी नहीं है, क्योंकि इसके उच्चारण से पहले कोई स्वर आना जरूरी है |इसलिए अनुस्वार को अयोगवाह भी कहते हैं | क्योंकि इसका योग स्वर और व्यंजन किसी के भी साथ नहीं किया जा सकता है (अयोग), फिर भी यह ध्वनि को वहन (वाह) करता है |

अनुनासिक 

अनुनासिक ध्वनियाँ वे स्वर ध्वनियाँ हैं,जो नाक से भी बोली जाती हैं | सभी स्वर अनुनासिक और निरनुनासिक दोनों होते हैं | जैसे-अँ,ऑँ,इँ,ईँ आदि अनुनासिक ध्वनियाँ हैं  |
निरनुनासिक-   अ,आ,इ,ई आदि |
अनुस्वार अलग से एक ध्वनि है | यह दीर्घ ध्वनि है |
जबकि अनुनासिक स्वर अलग से कोई स्वर नहीं है | जब स्वर के उच्चारण में हवा मुँह के साथ-साथ नाक से भी निकलती है,तो वह स्वर अनुनासिक बन जाता है | इसके उच्चारण में भी निरनुनासिक स्वर के समान ही समय लगता है 


2 comments:

Unknown said...

Nice language 👌

Anonymous said...

Nice Post
Simple Language

काव्य-गुण