जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी
के गोविन्दसराय में प्रसिद्द 'सुंघनी साहू' परिवार में
बाबू देवीप्रसाद जी के यहाँ 30 जनवरी 1890 को हुआ। इनके
पितामह बाबू शिवरतन साहू गरीबों को दान देने में प्रसिद्ध थे। इन्होनें आठवीं तक
विद्यालयी शिक्षा के बाद घर पर ही संस्कृत, हिन्दी, उर्दु, और अंग्रेजी
भाषाओँ का गहन अध्ययन किया।
जब प्रसाद जी लगभग 11 वर्ष के थे तो सन 1900 में उनके
पिता का देहान्त हो गया। जब वे 15 वर्ष के थे तो उनकी माता
मुन्नीदेवी का भी स्वर्गवास हो गया। 17 वर्ष की
अवस्था में बड़े भाई के निधन के बाद उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा और समस्त घर
परिवार की जिम्मेदारी प्रसाद जी पर आ पडी।
प्रसाद जी का पहला विवाह 1907 ईस्वी में विन्ध्यवासिनी
देवी के साथ हुआ। क्षय रोग के कारण 1916 ईस्वी में
उनका निधन हो गया। पश्चात् 1917 ईस्वी में उनका दूसरा विवाह सरस्वती देवी के साथ हुआ।
क्षय रोग के कारण ही दो वर्ष बाद उनका भी देहान्त हो गया। 1919 ईस्वी में
इनका तीसरा विवाह कमलादेवी के साथ हुआ।इनका
एक मात्र पुत्र रत्नशंकर प्रसाद तीसरी पत्नी
की ही संतान थे।
क्षय रोग ने उनका जीवन काफी कष्टमय बनाया। और इसी व्याधि से 47 वर्ष की आयु
में 1937 ईस्वी में उनका स्वर्गवास हो
गया।
रचनायें
जयशंकर प्रसाद प्रसिद्द हिन्दी कवि, नाटककार,कहानीकार,उपन्यासकार
तथा निबन्ध लेखक थे उन जैसी प्रतिभाओं का अवतरण धरती पर एकाधबार ही होता है।उन्होंने
अपनी काव्य-यात्रा ब्रजभाषा से आरम्भ की और धीरे-धीरे खड़ी बोली को अपनाते हुये इस
तरह अग्रसर हुये कि युग प्रवर्तक कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुये। जब वे नौ वर्ष
के थे उन्होंने कलाधर के नाम से ब्रजभाषा में सवैया नाम से अपने गुरु रसमय सिद्ध
को दिखाये थे,जिनसे गुरूजी बहुत प्रभावित हुये। कवि होने के
साथ-साथ प्रसाद जी प्रसाद जी गंभीर चिन्तक भी थे।उनके काव्य में छायावाद की स्पष्ट
झलक मिलती है वे छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक थे।
प्रसाद जी की प्रमुख रचनायें निम्नानुसार हैं-
कामायनी
कामायनी महाकाव्य प्रसाद जी की अक्षय कीर्ति का स्तम्भ है। भाषा,शैली और
विषय-वस्तु तीनों की ही दृष्टि से यह विश्व साहित्य का अनुपम काव्य है।कामायनी में
प्रसाद जी ने प्रतीकात्मक पात्रों के द्वारा मानव के मनोवैज्ञानिक विकास को
प्रस्तुत किया है तथा मानव जीवन में श्रद्धा और बुद्धि के समन्वित जीवन दर्शन को
प्रतिष्ठा प्रदान की है।
आँसू
आँसू कवि के मर्मस्पर्शी वियोगपरकउद्गारों का प्रदर्शन है।
लहर
यह मुक्तक रचनाओं का संग्रह है।
झरना
प्रसाद जी की छायावादी शैली में रचित कवितायेँ इसमें संकलित हैं।
चित्राधार
चित्राधार प्रसाद जी की ब्रज में रची गई कविताओं का संग्रह है।
नाटक
नाटक लेखन में प्रसाद जी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इनके प्रमुख नाटक चन्द्रगुप्त,ध्रुवस्वामिनी,स्कन्दगुप्त,जनमेजयका
नागयग्य, एक घूँट, विशाख,अजातशत्रु
आदि हैं।
कहानी संग्रह
प्रतिध्वनि,छाया,आकाशदीप,आँधी तथा
इन्द्रजाल आदि इनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह है।
उपन्यास
तितली और कंकाल
निबन्ध
काव्य और कला
तुलसीदास की समन्वय भावना
कवि नागार्जुनके गाँव में
अत: हम कह सकते हैं,कि जयशंकर प्रसाद जी हिन्दी साहित्य जगत के एक जाने
माने हस्ताक्षर थे। उनका अल्पायु में संसार से जाना हिन्दी साहित्य जगत के लिये
अपूरणीय क्षति है।
2 comments:
Good post thank you
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