मुंशी प्रेमचन्द

 उपन्यास सम्राट :मुंशी प्रेमचन्द

हिन्दी साहित्य जगत में उपन्यास सम्राट के नाम से प्रसिद्ध मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31जुलाई 1980 ईस्वी में उत्तरप्रदेश राज्य के वाराणसी जिले के 'लमही' गाँव में पिता मुंशी अजायबराय और आनन्दी देवी के घर में हुआ।

प्रेमचन्द के बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।प्रेमचन्द जी की प्रारम्भिक शिक्षा फारसी भाषा में हुई।जब वे सात वर्ष के थे,तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया।सोलह वर्ष की आयु होने पर पिता का देहान्त हो गया। इसके कारण उनका प्रारम्भिक जीवन संघर्षमय रहा। इसके बावजूद उन्होंने स्नातक तक पढाई की।

मैट्रिक की पढाई के बाद प्रेमचन्द जी एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गये। बी.ए. पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर नियुक्त हो गये। लेकिन भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में 1921 में 'असहयोग आन्दोलन' के कारण गाँधी जी के आव्हान पर उन्होंने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया और साहित्य लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया।इन्होंने अपने लेखन की शुरुआत उर्दू से की, उर्दू में प्रेमचन्द जी ने नबाबराय के नाम से लिखा।इनका सोजेवतन नामक कहानी संग्रह उर्दू में छपा जो अंग्रेज सरकार को काँटे की तरह चुभा, अंग्रेज सरकार के कोपभाजन से बचने के लिये इन्होनें हिन्दी में 'प्रेमचन्द' नाम से लिखना शुरू किया। हिन्दी में ये बाद में आये किन्तु जब आये तो कथा साहित्य में धूम मचा दी।

इनका जीवनकाल 1881 से 1936 ईस्वी तक रहा।

रचनायें 

प्रेमचन्द जी को उपन्यास सम्राट कहा जाता है। उनके लिखे उपन्यासों ने हिन्दी जगत में तहलका मचा दिया।उनके लिखे उपन्यासों को हम तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैं-(1) पहली श्रेणी के उपन्यास प्रारम्भकाल के हैंइनमें उपन्यासकार के व्यक्तित्व की आरम्भिक झाँकी मिलती है। ये उपन्यास हैं- प्रतिज्ञा, वरदान आदि।

(2) दूसरी श्रेणी की रचनाओं में सामाजिक समस्याओं को प्रधानता दी गई। सेवा-सदन में दहेज़ प्रथानिर्मला में वृद्धावस्था में दूसरा विवाह, शंका और अविश्वास के दुष्परिणाम, तथा गबन में आभूषणों की लालसा और उसके दुष्परिणामों को दिखाया गया है। (3) तीसरी श्रेणी की औपन्यासिक रचनाओं में प्रेमचन्द जीवन के एक अंश के नहीं अपितु सम्पूर्ण जीवन के द्रष्टा है। रंगभूमि, कायाकल्प, कर्मभूमि में उस समय चल रहे राजनैतिक आन्दोलन और समाज-सुधार की झलक मिलती है। प्रेमाश्रम में जमीदारी प्रथा में श्रमिक का शोषण वर्णित है।

गोदान प्रेमचन्द जी की सर्वाधिक लोकप्रिय कृति है। जमीदारों और सूदखोरों के द्वारा शोषित किसान अपने परिवार की प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिये किस प्रकार संघर्ष करता हुआ अपने जीवन की बलि दे देता है,इसका मार्मिक चित्रण इस उपन्यास में किया गया है।

कहानी संग्रह 

इनकी अधिकतर कहानियों में निम्न व मध्यम वर्ग का चित्रण है। कमल किशोर गोयनका के अनुसार प्रेमचन्द जी ने 301 कहानियाँ लिखी हैं। 

इनके कहानी संग्रह सप्त-सरोज

प्रेमपूर्णिमा 

प्रेम-पचीसी 

प्रेम प्रतिमा 

प्रेम द्वादशी

समरयात्रा 

मानसरोवर आदि हैं।

नाटक

प्रेमचन्द जी ने संग्राम, कर्बला और प्रेम की वेदी आदि नाटक लिखे।

अत: हम कह सकते हैं,कि प्रेमचन्द जी का हिन्दी जगत को योगदान अतुलनीय है।

 

3 comments:

Unknown said...

Good post

Unknown said...

बहुत संक्षिप्त व सटीक ज्ञानवर्धक पोस्ट

Unknown said...

GOOD POST

काव्य-गुण