कारक (Case)

कारक 

संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से उसका क्रिया तथा वाक्य के अन्य शब्दों के साथ सम्बन्ध का पता चलता है , उसे कारक कहा जाता है |
हिन्दी भाषा में कारकों के आठ भेद हैं, प्रत्येक कारक के अपने विभक्ति-चिह्न हैं | जो कि निम्नप्रकार हैं-

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कर्ताकारक      परसर्ग(विभक्तिचिह्न) - शून्य , ने 

किसी  वाक्य  का वह शब्द  जिससे काम करने  वाले का बोध होता है , कर्ताकारक कहलाता है| इसका परसर्ग   ' ने ' है | इसका प्रयोग केवल सकर्मक , भूतकाल और कार्य की पूर्णता बताने वाली क्रिया के साथ होता है| 
जैसे -  1. रघु पत्र लिख रहा है |
वाक्य में 'रघु ' कर्ताकारक है | परसर्ग शून्य है |
2. रघु ने पत्र लिखा |
वाक्य में रघु कर्ताकारक है |परसर्ग 'ने' क्योंकि क्रिया (लिखा) कार्य के पूर्णता को बता रही है और भूतकालिक है जिसका कर्म पत्र है|

कर्मकारक      परसर्ग - शून्य ,को

 क्रिया का फल 'कर्म ' पर पड़ता है | कर्म यदि प्राणीवाचक है , तो परसर्ग 'को ' का प्रयोग होता है , अन्यथा  नहीं |
जैसे - रजत पुस्तक पढता है 
वाक्य में कर्म 'पुस्तक ' अप्राणीवाचक है | अत:परसर्ग शून्य है | परसर्ग 'को ' का प्रयोग नहीं हुआ है | 
       विमल निर्मल को पढाता है |
इस वाक्य में 'निर्मल ' प्राणीवाचक कर्म है | अत: इसके साथ परसर्ग 'को' का प्रयोग हुआ है |

करणकारक     परसर्ग -से ,के द्वारा

 वह संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्द जिससे सहयोगी से क्रिया होती है , करणकारक कहलाता है |इससे परसर्ग 'से' तथा ' के द्वारा ' है |
जैसे -  मैंने मनुज को फ़ोन से सन्देश दिया |
इस वाक्य में फ़ोन के सहयोग से सन्देश दिया गया है , अतः 'फ़ोन ' करणकारक है | परसर्ग 'से' का प्रयोग हुआ 
है |
         मैंने अनुज के द्वारा तुम्हारा सामान  भेज दिया |
इस वाक्य में अनुज के सहयोग से भेजा गया है | अतः अनुज करणकारक और परसर्ग 'के द्वारा' का प्रयोग हुआ है |

सम्प्रदान कारक      परसर्ग-को, के लिए 

जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम के लिए क्रिया होती है या की जाती है , उसे सम्प्रदानकारक कहते हैं | इसके परसर्ग 'को' तथा 'के लिए' हैं |
जैसे -     राष्ट्रपति ने लेखकों को पुरस्कृत किया |
इस वाक्य में 'लेखकों' को पुरस्कृत किया गया है| अतः लेखक सम्प्रदानकारक है तथा 'को' परसर्ग का प्रयोग हुआ है |
          यह भवन कलाकारों के लिए है |
इस वाक्य में 'कलाकार' सम्प्रदान कारक है तथा परसर्ग 'के लिए' का प्रयोग हुआ है |

अपादान कारक       परसर्ग-से  (अलग होने के भाव में )

वह पद जिससे अलग होने का भाव प्रकट होता है, वह अपादान कारक कहलाता है| इसका परसर्ग 'से' है |
जैसे- 
पेड़ से पत्ते गिरते हैं |
 यहाँ पेड़ से पत्ते अलग हो रहे हैं, इसलिए पेड़ पद अपादान कारक है|और परसर्ग 'से' का प्रयोग हो रहा है | 

सम्बन्ध कारक       परसर्ग- का,की,के,रा,री,रे,ना,नी,ने

जब संज्ञा अथवा सर्वनाम से वाक्य के किसी अन्य संज्ञा अथवा सर्वनाम का सम्बन्ध स्पष्ट हो, वहाँ संबंधकारक होता है | जैसे-
मोहन का भाई सोहन है |
इस वाक्य में मोहन और सोहन का सम्बन्ध स्पष्ट हो रहा है, अतः मोहन सम्बन्ध कारक तथा 'का' परसर्ग है |

अधिकरण कारक       परसर्ग-में, पर 

क्रिया के होने का स्थान तथा समय सम्बन्धी आधार अधिकरण कारक कहलाता है | 
 जैसे-         मेज पर चूहा है |
                  मछली जल में तैर रही है |
यहाँ चूहे की स्थिति मेज पर तथा मछली के तैरने का आधार जल है |अतः अधिकरण कारक है |

संबोधनकारक      परसर्ग-हे, ओ, अरे

जिस शब्द से किसी संज्ञा को संबोधित करने का बोध हो, संबोधनकारक कहलाता है|इसके लिए परसर्ग 'हे','ओ','अरे'आदि का प्रयोग होता है |
जैसे-      हे प्रभु ! मैं आपकी शरण में हूँ |
             ओ गीता ! क्या बना रही हो |
            अरे कुलदीप ! उद्दंडता मत करो |
उक्त वाक्यों में प्रभु, गीता और कुलदीप को संबोधित किया जा रहा है, अतः ये संबोधन कारक हैं, तथा 'हे', 'ओ', 'अरे' आदि परसर्ग हैं |

 

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2 comments:

Unknown said...

Good post language is very simple

ANUSHA MIR said...

Right

काव्य-गुण