छन्द-2(Chhand in Hindi)

छंदों के भेद 

छन्द मुख्यरूप से दो प्रकार के होते हैं-
(1) वर्णिक छन्द – जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के नियमानुसार होती हैं, उन्हें 'वर्णिक छन्द' कहते हैं।
(२) मात्रिक छन्द – जिन छन्दों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है, उन्हें 'मात्रिक' छन्द कहते हैं।

छंदों के कुछ प्रकार

दोहा

दोहा एक मात्रिक छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) चरण में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। 
उदाहरण -ऽ  I
ऽ I   I  I I   ऽ I I    I ऽ    =13                 I I    I I   ऽ ऽ   ऽ I    =11
रात-दिवस, पूनम-अमा,(प्रथम चरण)      सुख-दुख, छाया-धूप। (द्वितीय चरण)
 I I   ऽ  I I   I I   ऽ I ऽ    =13                 I I ऽ  I  I ऽ   ऽ I    =11
यह  जीवन  बहु  रूपिया, (तृतीय चरण)   बदले कितने  रूप॥   (चतुर्थ चरण)
रोला
रोला भी मात्रिक छंद होता है। इसके विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं। उदाहरण -
 ऽ ऽ I I   I I ऽ I =11        I I I  I I  I I  ऽ I I   ऽ   =13
नीलाम्बर परिधान,            हरित पट पर सुन्दर है।

सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।

यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥

सोरठा

सोरठा मात्रिक छंद है,और यह दोहा का ठीक उलटा होता है। इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। उदाहरण -
रहिमन हमें न सुहाय, =11 अमिय पियावत मान विनु।=13
 जो विष देय पिलाय,=11   मान सहित मरिबो भलो।।=13

सोरठा और रोला में पहला  अंतर यह है,कि सोरठा के विषम चरणों में तुक होती है , सम चरणों में तुक होना जरुरी नहीं है। दूसरा अंतर ये है कि सोरठा के अंत में लघु वर्ण आता है। बाकी संरचना समान ही है; विषम चरणों में 11 मात्राएँ तथा सम चरणों 13-13 मात्राएँ रहती हैं |

चौपाई

चौपाई सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। उदाहरण -
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।=16    जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।।=16
राम दूत अतुलित बल धामा ।=16     अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ।।=16

कुंडलिया

कुण्डलिया विषम मात्रिक छंद है। इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। दोहों के बीच एक रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है। पहले दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द से कुण्डलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुण्डलिया समाप्त भी होता है। 
उदाहरण -
    दोहा कुण्डलिया बने, ले रोलों का भार,
              तेरह-ग्यारह जोड़िये, होगा बेड़ा पार |
     होगा बेड़ा पार,छंद की महिमा न्यारी,
        बहती रस की धार, मगन हो दुनिया सारी |
     'अम्बरीष' क्या छंद, शिल्प ने सबको मोहा,
          सर्दी बरखा धूप, खिले हर मौसम दोहा ||
एक अन्य उदाहरण
      साईं इस संसार में, मतलब को व्यवहार,
              जब लगि पैसा गाँठ में तब लगि ताको यार |
     तब लगि ताको यार,यार संगहि संग डोलें,
              पैसा रहा न पास, यार मुख सों नहिं बोले |
     कह गिरधर कविराय जगत यहि लेखा भाई,
             करत बेगर्जी प्रीति यार बिरला कोई सांईं ||

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