अलंकार(ALANKAR)-3

अलंकार

अलंकार-3 में हम अर्थालंकारों के बारे में ज्ञान प्राप्त करेंगे।
जहाँ काव्य कविता में अर्थ के द्वारा चमत्कार उत्पन्न किया जाता हैं, वहाँ अर्थालंकार होता हैं। इनमें शब्दों की जगह पर उनके पर्यायवाची भी रख दिए जाते हैं, तो उनका चमत्कार यथावत रहता है।

 (1)  उपमा अलंकार 

 उपमा शब्द का अर्थ है 'तुलना'। जहाँ किसी व्यक्ति या वस्तु की अन्य व्यक्ति या वस्तु से चमत्कारपूर्ण समानता दिखायी जाये, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
उदाहरण - पीपर- पात सरिस मन डोला।
उपमालंकर के चार अंग है -
  उपमेय - जिसका वर्णन या तुलना की जाए। उपमेय हमेशा उपमान से गौण रहता है ।
  उपमान - जिससे उपमेय की तुलना की जाए।यह उपमेय से श्रेष्ठ तथा लोक प्रसिद्ध होता है ।
  वाचक शब्द - समानता बताने वाले शब्द। जैसे-सा, सम, सी, ज्यो, तुल्य आदि।
  साधारण धर्म -उपमेय और उपमान के समान धर्म को व्यक्त करने वाले शब्द।
जैसे - "राधा का मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है"। वाक्य में राधा उपमेय, चन्द्रमा उपमान, के समान वाचक-शब्द तथा सुन्दर समान धर्म है ।
उपमालंकर के निम्न तीन भेद हैं-
(1) पूर्णोपमा-जब कविता में उपमा के चारों ही अंग विद्यमान हों, वहाँ पूर्णोपमा अलंकार होता है।
जैसे- दोनों बाहें कलभकर-सी, शक्ति की पेटिका हैं।
प्रस्तुत पंक्ति में उपमेय(दोनों बाहें), उपमान(कलभ-कर), साधारण-धर्म(शक्ति की पेटिका) तथा वाचक-शब्द (सी) है, अतः यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।
(2) लुप्तोपमा-जब कविता में उपमा के चारों अंगों में से कोई एक या एकाधिक अंग अनुपस्थित हो । वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है।
जैसे- पड़ी थी बिजली सी विकराल।
प्रस्तुत काव्य-पंक्ति में बिजली(उपमान), सी(वाचक-शब्द) तथा विकराल(साधारण-धर्म) है| यहाँ उपमेय लुप्त है, अतः लुप्तोपमालंकार है
(3) मालोपमा-जब एक ही उपमेय की एकाधिक उपमानों से समानता दिखलाई जाये, वहाँ मालोपमा अलंकार होता है।
जैसे- अंगड़ाई सी,अलसाई सी, अपराधी सी भय से मौन।

(2) रूपक अलंकार 

 जहाँ गुणों में अत्याधिक समानता दिखलाने के लिए उपमान और उपमेय के भेद को समाप्त कर उन्हें एक कर दिया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसके लिए निम्न बातों की आवश्यकता है -
(1)- उपमेय को उपमान का रूप देना।
(2)- वाचक शब्द का लोप होना।
(3)- उपमेय का भी साथ में वर्णन होना।
उदहारण-
अम्बर-पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने अम्बर और पनघट में तारा और घडा में तथा ऊषा और नागरी में उपमेय व उपमान का भेद नष्ट कर दिया, अतः रूपक अलंकार है। 

(3) उत्प्रेक्षा अलंकार 

 जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
 इसमें 'मनु', 'मानो','जनु', 'जानो' आदि शब्दों का प्राय: प्रयोग होता है।
उदाहरण-
सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
 मनहु नील मणि शैल पर, आतप परयो प्रभात

(4) मानवीकरण अलंकार 

 जहाँ पर काव्य में जड़(निर्जीव) में चेतन(सजीव) का आरोप होता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।इसमें निर्जीव पदार्थों को मानव के समान सप्राण चित्रित किया जाता है ।
उदाहरण-
मेखलाकार पर्वत अपार, अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड़ ।
अवलोक रहा है बार-बार, नीचे जल में निज महाकार ।।

(5) अतिशयोक्ति अलंकार 

 जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति का वर्णन इतना बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता है,कि लोक-मर्यादा का उल्लंघन कर जाये, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।
एक अन्य उदहारण-
पत्रा ही तिथि पाइए, वा घर के चहुँ पास।
नित प्रति पून्यो ही रहत, आनन ओप उजास।।

(6) विभावनालंकार

जब कारण के बिना ही कार्य का होना पाया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है।
जैसे- बिना पायल के ही बजे घुंघरू।
एक अन्य उदाहरण-
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन,पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।।

(7) विशेषोक्ति अलंकार 

विभावनालंकार के विपरीत जब कारण के रहने पर भी कार्य नही होता है, वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है , जैसे-
सुनत जुगल कर माल उठाई, प्रेम विवश पहिराहु न जाई।
यहाँ माला पहनाने के लिए हाथ हैं, किन्तु पहनाई नहीं जा रही है। अतः विशेषोक्ति अलंकार है ।

(8) दृष्टांत अलंकार 

 इस अलंकार में पहले एक बात कहकर फिर उससे मिलती-जुलती बात उदाहरण के रूप में कही जाती है । इसमें दो वाक्य होते हैं । एक उपमेय और दूसरा उपमान वाक्य होता है।वहाँ दृष्टांत अलंकार होता है।
उदाहरण-
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रस्सी आवत-जात से सिल पर पडत निसान।।

(9) उल्लेख अलंकार 

 जहाँ एक वस्तु का वर्णन अनेकों प्रकार से किया जाता है ,वहाँ 'उल्लेख' अलंकार होता है।
उदाहरण-
तू रूप है किरण में , सौन्दर्य है सुमन में।
 तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में ।।

(10) प्रतीप अलंकार 

 प्रतीप का अर्थ है 'उल्टा' या 'विपरीत'। इसमें उपमा के उलट उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ कहा जाता है। इस अलंकार में उपमान को लज्जित, पराजित या हीन दिखाकर उपमेय की श्रेष्टता बताई जाती है।इसी कारण इसे प्रतीप अलंकार कहते हैं।
उदाहरण-
सिय मुख समता किमि करै चन्द वापुरो रंक।
सीताजी के मुख (उपमेय)की तुलना बेचारा चन्द्रमा (उपमान) नहीं कर सकता। उपमेय की श्रेष्टता प्रतिपादित होने से यहां 'प्रतीप अलंकार' है।

(11) भ्रान्तिमान अलंकार 

 जहाँ पर सादृश्यता के कारण उपमेय में उपमान का आभास हो, अर्थात जब एक वस्तु को देखकर उसके समान दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाये तब भ्रान्तिमान अलंकार होता है।
उदाहरण-
नाक का मोती अधर की कांति से,
बीज दाड़िम का समझ कर भ्रान्ति से ।
देखता ही रह गया शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है

(12) संदेह अलंकार

 जब उपमेय से साम्यता के कारण उपमान का संशय हो जाये, देखकर यह निश्चय नही हो पाता कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनी रहती है,तब संदेह अलंकार होता है।
उदाहरण-
कोई पुरन्दर की किंकरी(अप्सरा) है, या किसी सुर की सुन्दरी है 
एक अन्य उदाहरण-
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है, नारी ही कि सारी है कि सारी ही कि नारी है

3 comments:

Suchitra said...

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Krishan Murari Yadav said...

जी धन्यवाद हौसला आफजाई के लिये। अन्य हिन्दी प्रेमी जनों को भी हमारे ब्लॉग के बारे मे बतायें और उनको अन्य पोस्ट भी पढ़ने के लिये प्रेरित करें ।

Anonymous said...

शानदार पोस्ट

काव्य-गुण