प्रयोगवाद
प्रयोगवाद का आरम्भ अज्ञेय द्वारा सम्पादित 'तारसप्तक' के प्रकाशन के साथ होता है | तारसप्तक में संकलित कवियों ने भाषा, शिल्प, एवम् कथ्य के स्तरों पर सर्वथा नये उपमान तथा प्रतीक प्रयुक्त किये हैं |अज्ञेय जी ने स्वीकार किया कि, "प्रयोगवादी कवि किसी गंतव्य तक नही पहुँचे हैं, अपितु वे राहों के अन्वेषी हैं" |लक्ष्मीकान्त वर्मा के अनुसार "प्रयोगवाद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ने की बौद्धिक जागरूकता है "|
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बदले हुए परिवेश में नई भाषा, नये प्रतीक, नये उपमान आवश्यक हो उठे |
चाँदनी चन्दन सरीखी क्यों लिखें,
मुख हमें कमलों सरीखे क्यों दिखें |
हम कहेंगे चाँदनी उस रुपये जैसी है,
कि जिसमें चमक है पर खनक गायब है |
प्रयोगवाद का समय
प्रथम तारसप्तक का प्रकाशन सन् 1943 ईस्वी में हुआ | अतः प्रयोगवाद का समय भी सन् 1943से 1953 ईस्वी तक माना जाता है |
प्रयोगवाद के प्रमुख कवि
मुक्तिबोध
नेमिचंद जैन
भारतभूषण
प्रभाकर माचवे
गिरजाकुमार माथुर
रामविलास शर्मा
अज्ञेय
भवानी प्रसाद मिश्र
शकुंत माथुर
हरिनारायण व्यास
शमशेर
नरेश मेहता
रघुवीर सहाय
धर्मवीर भारती
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